चोटी की पकड़–74

यूसुफ के पीछे तीन आदमी लगाए गए। होटल में यूसुफ ने कलकत्ते के एक मित्र का पता लिखाया था। 


रात को प्रभाकर अपने मित्रों की तलाश में बाजार में गए। पालकी के अंदर बैठे रहे। पालकी के दरवाजे बंद। 

दिलावर ने साथियों के साथ यूसुफ का पता ला दिया। बाजार के लोगों पर राजा के लोगों का प्रभाव था। 

जिस कमरे में सामान था, उसमें प्रभाकर के साथी नहीं मिले। प्रभाकर लौटे। अतिथिशाला के कमरे में आकर पूछा, "बाजार में रहने के कितने होटल हैं?"

दिलावर ने कहा, "सिर्फ तीन।"

और कोई रहने की जगह है?"

"और रंडियों के मकान हैं।"

निश्चय करके प्रभाकर ने पूछा, "क्या नाम इस आदमी ने लिखाया है?"

"शेख नजीर।"

कलकत्ते का पता दिलावर ने लिखा लिया था। प्रभाकर ने कहा, "सावधानी से इस आदमी का पीछा किया जाना जरूरी है।


 वहाँ तीन आदमी जाएँ। एक पहले ही उस पते पर पहुँचे। साथ वकील और पुलिस का अच्छा आदमी, कम-से-कम इंस्पेक्टर होना चाहिए। हम चिट्ठी देंगे, वकील आदमी ले लेगा। 

इस पते का आदमी अगर यह नहीं, तो वह मिलेगा। इसके पहुँचने के पहले वहाँ पहुँचना चाहिए। यह भी बाद को वहाँ जाएगा, और यह कहेगा कि वह स्वीकार कर ले कि वह यहाँ आया। तुम समझे?"

"हाँ, लेकिन यह अगर कहकर आया होगा तो सब-का-सब गुड़-गोबर हो जाएगा। बड़ा नीचा देखना होगा। वह इसी का नाम बतलाएगा, या नहीं मिलेगा। 

यह सरकारी आदमी है, वह भी होगा। इस तरह न बनेगा। अभी आप कच्चे हैं, बाबू। हम होटलवाले से कह आए हैं, कल वह इनसे इनके एक रिश्तेदार का नाम पूछेगा, अपने मन से पूछेगा, जैसे साले का नाम या मामू का या मौसी का। 

इन्हें जवाब देना होगा, अगर जवाब न दिया तो कहा जाएगा कि ये राजा के सिपुर्द किए जाएंगे। ये गलत नाम बतलाएँगे। इस तरह यहीं गवाही पक्की हो जाएगी।

 फिर कलकत्ते का हाल हम मालूम कर लेंगे। राजा भी सरकार के हैं। अगर इन्होंने बात न मानी तो इनसे इतने सवाल किए जाएंगे कि होश फाख्ता हो जाएंगे।"।

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